• तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद फिर शुरू

    एक बार फिर तीसरा मोर्चा! प्रत्येक लोकसभा चुनाव से पहले, यह तीसरे मोर्चे का विचार तैरता है, और 2024 में होने वाला आम चुनाव कोई अपवाद नहीं हैं

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

    - कल्याणी शंकर

    सवाल यह है कि क्या तीसरे मोर्चे के आकांक्षी- राष्ट्रीय राजनीति में किसी स्थान पर कब्जा करने में कामयाब होंगे या मोदी की लोकप्रियता के साथ महज उनके अहंकार का टकराव मात्र होगा? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो यथार्थवादी हैं, मानते हैं कि 'तीसरे मोर्चे का कोई सवाल ही नहीं है। एक ऐसा मोर्चा होना चाहिए जिसमें कांग्रेस भी शामिल हो।

    एक बार फिर तीसरा मोर्चा! प्रत्येक लोकसभा चुनाव से पहले, यह तीसरे मोर्चे का विचार तैरता है, और 2024 में होने वाला आम चुनाव कोई अपवाद नहीं हैं। राजनीतिक पंडितों का अनुमान है कि भाजपा के खिलाफ पूरे विपक्ष के लिए जगह है, लेकिन तीसरे मोर्चे के लिए नहीं, क्योंकि यह भाजपाविरोधी वोटों को विभाजित करेगा और सत्तारूढ़ दल को मदद करेगा।

    इस अवधारणा को 1977, 1989 और 1996-1998 में आजमाया और परखा गया, जिसे या तो कांग्रेस का या भाजपा का समर्थन प्राप्त था। लेकिन वे सभी अल्पकालिक थे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में कुछ क्षेत्रीय क्षत्रप 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें बीआरएस, आप, सीपीआई-एम, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के प्रमुख कुछ प्रभावशाली क्षेत्रीय नेता शामिल हैं। वे भाजपा से लड़ने के लिए बिना कांग्रेस के गठबंधन चाहते हैं।

    समानांतर में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी वर्तमान में विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए 'भारत जोड़ो यात्रा' पर हैं। वास्तव में, जबकि राहुल विपक्ष का नेतृत्व करना चाहते हैं, क्षेत्रीय नेता एक फ्रंट माइनस कांग्रेस को पसंद करते हैं। तीसरा मोर्चा बनाने के लिए कई अगर और मगर हैं।

    1980 के दशक के बाद से, सपा, बसपा, राजद और जद (यू) जैसी क्षेत्रीय ताकतें उभरीं और अपने-अपने राज्यों में उनका गढ़ था। क्या ये नेता प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देने के लिए एक साथ आयेंगे, यह लाख टके का सवाल है। इसके अलावा, ऐतिहासिक रूप से, अंकगणित ने दिखाया है कि तीसरा मोर्चा केवल कांग्रेस या भाजपा के समर्थन से ही सत्ता में आ सकता है।

    अपने गौरवशाली अतीत, लेकिन दयनीय वर्तमान के साथ, एक कमजोर कांग्रेस वर्तमान में पार्टी को बचाने का प्रयास कर रही है। इसी को देखते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 2024 के चुनाव से पहले रिब्रांड किया जा रहा है। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट करने के लिए 'भारत जोड़ो यात्रा' निकाली है। ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने 30 जनवरी को कश्मीर में समापन समारोह के लिए समाजवादी पार्टी और सीपीएम सहित 21 विपक्षी दलों को आमंत्रित किया है।

    राव ने 2018 की शुरुआत में अपने तीसरे मोर्चे के विचार को यह कहते हुए पेश किया था कि कांग्रेस और भाजपा देश पर शासन करने में विफल रही हैं। केसीआर के दिमाग में, वह और मोदी या कांग्रेस देश को सही दिशा में नहीं ले जा सकते थे। उन्होंने 2019 के आम चुनाव से पहले एक गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपा मोर्चा बनाने की कोशिश भी की थी, लेकिन यह विफल हो गया था। अधिकांश क्षेत्रीय नेताओं केवल नैतिक समर्थन देने से आगे नहीं बढ़े।

    अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए, (केसीआर) ने इस साल 18 जनवरी को खम्मम में एक बड़ी सार्वजनिक रैली की। पिछले साल 5 अक्टूबर को केसीआर द्वारा अपनी क्षेत्रीय पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति को भारत राष्ट्र समिति में बदलने के बाद यह पहली रैली थी। केसीआर की खुशी है कि चुनाव आयोग ने बीआरएस को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी है।

    जिन लोगों ने कांग्रेस यात्रा को छोड़ दिया उनमें से अधिकांश ने खम्मम रैली में भाग लिया। इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उनके पंजाब के समकक्ष भगवंत मान, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और सीपीआई के डी राजा शामिल थे। केसीआर ने गठबंधन में शामिल होने के लिए ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ बैक-चैनल संचार भी खोला है। सीपीआई आखिरकार 30 जनवरी को राहुल की श्रीनगर रैली में शामिल होने का निर्णय कर चुकी है। केसीआर कांग्रेस के विरोध में हैं क्योंकि दोनों दल तेलंगाना में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। यही कारण है कि वह एक गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपायी मोर्चे का नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं।

    दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के ग्रैंड फिनाले से कुछ दिन पहले खम्मम बैठक का आयोजन किया था। केसीआर ने इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में हैट्रिक लगाने का इंतजार करते हुए राष्ट्रीय भूमिका के लिए अपनी महत्वाकांक्षा को कभी नहीं छिपाया। उनका मानना है कि उनकी नियति में मोदी का राष्ट्रीय विकल्प बनना तय है।

    हालांकि, 2014 से लगातार दो कार्यकाल के बाद, केसीआर को सत्ताविरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने राज्य में कांग्रेस और टीडीपी को खत्म कर दिया है, लेकिन उनकी निराशा है कि भाजपा राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है। वह कुल मिलाकर किस्मत पर ही निर्भर हैं।

    एक बड़ा सवाल यह है कि क्या तीसरे मोर्चे के आकांक्षी- राष्ट्रीय राजनीति में किसी स्थान पर कब्जा करने में कामयाब होंगे या मोदी की लोकप्रियता के साथ महज उनके अहंकार का टकराव मात्र होगा? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो यथार्थवादी हैं, मानते हैं कि 'तीसरे मोर्चे का कोई सवाल ही नहीं है। एक ऐसा मोर्चा होना चाहिए जिसमें कांग्रेस भी शामिल हो। तभी हम 2024 में भाजपा को हरा सकते हैं।'

    विपक्ष को तय करना है कि उनका असली प्रतिद्वंद्वी कौन है! भाजपा या कांग्रेस? कमजोर कांग्रेस क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए खतरा नहीं है। फिर भी, उनकी महत्वाकांक्षा उन्हें अपने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करने से रोकती है। बदलते चुनावी गठजोड़ केवल बार-बार होने वाले राजनीतिक झटकों की पेशकश करते हैं। जब तक विपक्ष बंटा रहेगा, मोदी तीसरे कार्यकाल के लिए वापसी करेंगे।

    तीसरे मोर्चे की नाजुक एकता की अक्सर बहुत जल्द अलग होने के लिए आलोचना की जाती है। एक कहावत है कि तीसरे मोर्चे के नेता थोड़े समय के लिए ही साथ रह सकते हैं या कम समय के लिए अलग रह सकते हैं। अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की पहचान करने और एक सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करने के बाद ही दूसरा मोर्चा या तीसरा मोर्चा सफल हो सका। क्षेत्रीय नेता आपसी टकराव एवं झंझटों से बचने के लिए चुनाव के बाद ऐसा करना चाहते हैं।

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

बड़ी ख़बरें

अपनी राय दें